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Saturday, April 19, 2008

१० पैसे की मोबाइल कॉल - क्या सपना होगा पूरा ?

टेलीकॉम नियामक प्राधिकरण ने हाल ही में एक वक्तव्य जारी कर दावा किया है कि वह दिन अब दूर नहीं जब 10 पैसे में मोबाइल कॉल हो सकेगी. इसका कारण यह बताया गया कि एक ओर मोबाइल कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा तो बढ रही है, और साथ ही साथ ग्राहक आधार बढने पर प्रति कनेक्शन लागत भी निरंतर घट रही है. मोबाइल कंपनियों के सूत्रों के अनुसार प्रति ग्राहक प्राप्ति पहले की तुलना में काफी कम होती जा रही है. वर्तमान में दो प्रकार की मोबाइल प्रोद्योगिकी देश में उपयोग की जा रही है. एक है सीडीएमए और दूसरा है जीएसएम. दोनों प्रौद्योगिकिया अलग-अलग है और इसलिए अभी तक दोनों प्रौद्योगिकियों की कंपनियां भी अलग-अलग हैं. देश में सबसे पहले मोबाइल का प्रवेश जीएसएम प्रौद्योगिकी के आधार पर हुआ और उसकी अग्रणी कंपनी है, सुनील भारती की कंपनी एयरटेल. साथ ही साथ पहले एस्सार हच और बाद में वोडाफोन के नाम से दूसरी कंपनी है, जो जीएसएम प्रौद्योगिकी के आधार पर बाजार में दूसरा सस्थान बनाये हुए है. इनके अतिक्ति बाजार में आदित्य बिरला की आइडिया एवं अन्य कई कंपनियां जैसे बीपीएल, स्पाइस इत्यादि हैं, जो बाजार में हिस्सेदारी रखती हैं. सभी जानते हैं कि सर्वप्रथम जब मोबाइल फोन इस देश में आया तो प्रति मिनट कॉल शुल्क 32 रुपये और सुनने के लिए 16 रुपये रखा गया था. ग्राहक आधार बढता गया, नयी कंपनियां आती रहीं और कॉल शुल्क घटता गया. लेकिन जब तक सीडीएमए पर आधारित प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए रिलायंस और टाटा नहीं आयीं थी, तब तक ग्राहकों को कंपनियों के एकाधिकार के चलते भरी कॉल शुल्क देना पडता था. लेकिन पहले रिलायंस और बाद में टाटा के आने प्रतिस्पर्द्धा का स्तर बढ गया और कॉल शुल्कों में भारी गिरावट देखी गयी. अभी तो कॉल शुल्क के बारे में निश्चित तौर पर कहना काफी हद तक नामुमकिन सा लगता है, क्यूंकि विभिन्न प्रकार की योजनाएं कंपनियां लेकर आती हैं. अपने ग्राहक आधार को बढाने के लिए कंपनियां अपने नेटवर्क पर की जानेवाली कॉल को थोडा सा शुल्क लेकर मुफ्त या 10 पैसे प्रति मिनट पर उपलब्ध करा देती हैं. अधिक घूमंतू लोगों के लिए कम लागत के रॉमिंग प्लान, युवाओं के लिए नाइट टॉक प्लान, लघु संदेशों (एसएमएस) के लिए अलग प्रकार के प्लान एसटीडी कॉल के लिए कुछ और अलग प्लान जैसे अलग-अलग प्रकार के तरीकों द्वारा मोबाइल कंपनियां अपने ग्राहकों को लुभाने का प्रयास करती हैं. लेकिन फिलहाल सीडीएमए प्रौद्योगिकी के मोबाइल के कॉल शुल्क जीएमएम प्रौद्योगिकी के कॉल शुल्कों से काफी कम है. कुछ भी कहे, लेकिन निरंतर बढती प्रतिसस्पर्द्धा के चलते देश में मोबाइल कॉल शुल्कों की दरें भी घटी और उपभाक्ताओं की चयन की स्वतंत्रता भी बढती गयी. आज उपभोक्ता को टेलीफोन कनेक्शन मिनटों में मिल जाता है, जबकि मोबाइल कंपनियों के आने से पूर्व लैंडलाइन कनेक्शन मिलने में 8 से 15 महीने तक का समय लगता था. आज सामान्य कामगार भी मोबाइल फोन रख सकते हैं और रखते भी हैं. चाहे ऑटो रिक्शा ड्राईवर हो, बढई हो, एलेक्ट्रिसियन हो अथवा पलंबर हो, शहरों में हर किसी के हाथ में मोबाइल स्वाभाविक बात है. जब देश आजाद हुआ तब 10000 लोगों के पीछे मात्र दो लोगों के पास ही टेलिफोन कनेक्शन होता था. 2007 दिसंबर तक के आकडों के अनुसार देश में 28 करोड 57 लाख टेलीफोन कनेक्शन थे, जबकि आज हर दस में से लगभग तीन लोगों के पास इस देश में टेलीफोन कनेःशन हैं. इसमें से मोबाइल कनेक्शन की संख्या 24 करोड 56 लाख है. जिस प्रकार से लैंडलाइन टेलीफोन तारों से जुडते हैं, मोबाइल कनेक्शन बिना तारों के होते हैं, लेकिन उनके संदेशों के जाने का माध्यम स्पेक्ट्रम होता है. यह स्पेक्ट्रम रक्षा मंत्रालय के पास ही उपलब्ध होता है. सैन्य कार्यों से यह स्पेक्ट्रम खाली कर सरकार को दिया जाता है, जिसे सरकार टेलीकॉम कंपनियों को लाइसेंस फीस लेकर आवंटित करती है. देश में कुल स्पेक्ट्रम सीमित हैं. प्रधानमंत्री ने भी यह माना है कि स्पेक्ट्रम कीमती और सीमित संसाधन है, जिसका उपयुक्त प्रयोग होना चाहिए. वास्तव में किसी भी कंपनी को आवंटित स्पेक्ट्रम उसके द्वारा दिये जाने वाले कनेक्शन की अधिकतम मात्रा को तय करेगा. यानी जिस कंपनी के पास अधिक स्पेक्ट्रम होगा, वही बाजार में बडी कंपनी बनेगी.एक समय था कि जब भारतीय टेलीकॉम उद्योग सरकारी क्षेत्र में होने के कारण पूर्णतः नियंत्रित था. भारी नियंत्रण के चलते टेलीकॉम सेवाओं का अपेक्षित विस्तार नहीं हो पाया. तकनीकी विकास और नियंत्रणों के समाप्त होने एवं बडी संख्या में निजी क्षेत्र की कंपनियों के प्रवेश ने भारत में टेलीकॉम सेवाओं का अभूतपूर्व विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. हाल ही में स्पेक्ट्रम की बिक्री को लेकर एक बडा विवाद खडा हो गया है. अपनी सेवाओं को बढाने के लिए अधिक स्पेक्ट्रम की मांग को लेकर 46 कंपनियां स्पेक्ट्रम के लिए पंक्ति में थीं. यह पंक्ति लाइसेंस मिलने की तिथि के अनुसार क्रमबद्ध की गयी थी. भारत सरकार के संचार मंत्रालय द्वारा एक प्रेस नोट जारी कर रिलाइंस कम्यूनीकेशन को जीएसएम लाइसेंसी का दर्जा प्रदान कर दिया और उसे 1651 करोड रुपये में स्पेक्ट्रम उसी दिन बेच दिया. रिलाइंस कम्यूनिकेंशन 1651 करोड रुपये के डिमांड डाफ्ट के साथ पहले से ही तैयार बैठी थी. इस प्रकार यह कंपनी ४६ कंपनियों जिन्होंने 575 आवेदन किये हुए थे की पंक्ति में सबसे आगे निकल गयी साथ ही साथ लाभांवित हुई एक अन्य सीडीएमए कंपनी टाटा का मानना है कि इससे 6000 करोड रुपये के राजस्व का घाटा हुआ. सरकार पहले आओ और पहले पाओ के स्थान पर यदि स्पेक्ट्रम बिक्री के लिए नीलामी की प्रक्रिया अपनाती, तो उसे 6000 करोड रुपये अधिक मिलता. इसके साथ ही कानूनी युद्ध शुरू हुए और साथ ही शुरू हुआ टेलीकॉम नियामक प्राधिकरण और भारत सरकार के टेलीकॉम विभाग के बीच वाक्‌युद्ध. इस सब घटनाक्रम से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि मोबाइल कंपनियों की इस लडाई में सरकार द्वारा कुछ विशेष कंपनियों को अनुचित रूप से लाभ पहुंचाने का प्रयास किया गया है. जिसका नुकसान अन्य कंपनियों और विशेष तौर पर छोटी कंपनियों को उठाना पडेगा. लेकिन यह नुकसान कंपनियों तक सीमित नहीं रहेगा. पूर्व के अनुभव से यह स्पष्ट है कि टेलीकॉम उद्योग में प्रतिस्पर्धा के चलते कॉल शुल्क 32 रुपये प्रति मिनट से घटकर आमतौर पर 50 से एक रुपये तक पहुंच चुका है. लोगों को टेलीफोन सुविधा सस्ते से सस्ते दाम पर उपलब्ध कराने के लिए टेलीकॉम कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढाने में सरकार का एक विशेष दायित्व है. जिन परिस्थितियों में अचानक नीति परिवर्तन करते हुए स्पेक्ट्रम आवंटित करने का कार्य सरकार ने किया यह उसके इस दायित्व के प्रतिकूल है, लेकिन 10 पैसे प्रति मिनट कॉल के लक्ष्य को यदि प्राप्त करना है तो सरकार को लॉबीवाद के मार्ग से अलग हटकर आम आदमी के हित में सोचना होगा.

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