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Saturday, August 23, 2008

जानिए ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (GPS) को

क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप किसी नए शहर की सैर करने गए हों और वहाँ के रास्तों से अनजान आपने सही रास्ता चुनने में भूल कर दी और फिर बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा हो आपको? अगर आप इस तरह की परेशानी का अनुभव कर चुके हैं तो यह जानकारी आपको बहुत पसंद आएगी।इस तरह की परेशानियों के समाधान के रूप में सामने आया है जीपीएस यानी ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के स्पेस पर आधारित एक रेडियो नेविगेशन सिस्टम है। यह सिस्टम, आपको न केवल आपके वर्तमान स्थान के बारे में बताएगा, बल्कि आप जिस स्थान पर पहुँचना चाहते हैं उसका सही रास्ता भी बताएगा। यह सिस्टम आम लोगों को टाइमिंग सर्विस (सही वक्त बताने की सेवाएँ) भी प्रदान करता है। जीपीएस अपने बहुत सारे उपयोगकर्ताओं को सही समय और सही स्थान बताने की सेवाएँ प्रदान कर रहा है। जीपीएस तीन भागों से मिलकर बनता है। इनमें से पहला है जीपीएस का वह उपग्रह जो पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा लगाता है। दूसरा है, पृथ्वी पर स्थित नियंत्रण और प्रबोधन केन्द्र तथा तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण, उपयोगकर्ताओं के पास रखा जीपीएस रिसीवर।जीपीएस उपग्रह से प्रसारित होने वाले संकेत (सिग्नल) जीपीएस रिसीवर पहचाने जाने पर अधिगृहीत कर लिए जाते हैं। इसके पश्चात जीपीएस रिसीवर उपयोगकर्ताओं को स्थान की त्रिआयामी जानकारी प्रदान करता है, जिसमें उस स्थान की लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई शामिल होती हैं।जीपीएस रिसीवर बाज़ार में आसानी से प्राप्त हो सकते हैं। इसे लाने के बाद आप इसकी मदद से आसानी से यह पता लगा सकते हैं कि आप कहाँ हैं और जहाँ जाना चाहते हैं उस जगह का सही रास्ता क्या है। परिवहन सेवाओं के लिए यह कितना ज़रूरी है यह तो आप उन दिनों को याद करके पता लगा ही सकते हैं, जब आपको बसों और ट्रेनों का घंटों इंतज़ार करने के बाद भी यह पता नहीं चल पाता था कि आखिर उनके आने का सही समय क्या है? परंतु अब जीपीएस की मदद से यह संभव हो गया है।आपातकालीन सेवाएँ और आकस्मिक विपदाओं में सहायक संस्थाएँ दोनों ही जीपीएस पर निर्भर हैं, ताकि अपनी सेवाएँ समय पर पहुँचा सकें और लोगों की जान समय पर बचाई जा सके। प्रतिदिन जिन सेवाओं का हम उपयोग करते हैं, जैसे बैंक, मोबाइल सेवाएँ, विद्युत ग्रिड आदि सभी अपनी सेवाएँ ठीक तरीके से पहुँचाने में जीपीएस पर ही निर्भर रहती हैं। जीपीएस को 1994 में अमेरिकी सैन्य सेवाओं के लिए विकसित किया गया था। इस जीपीएस रिसीवर को सैनिक अपने साथ रखते थे। सभी गाड़ियों, हेलिकॉप्टरों और विमानों में इस रिसीवर को लगा दिया जाता था। इस रिसीवर को बहुत से विमानों में उपयोग किया जाता था जैसे एफ-16, के सी-135 एरियल टैंकर आदि।लेकिन अब इसका प्रयोग प्रतिदिन काम में आने वाली सेवाओं में भी होने लगा है। इनमें से सबसे लोकप्रिय सेवा को ‘वेहिकल ट्रैकिंग’ के नाम से जाना जाता है। ऑटोमोबाइल निर्माता अब गाड़ियों में मूविंग मैप डिस्प्ले लगा रहे हैं जो जीपीएस द्वारा संचालित होते हैं। जिन गाड़ियों में मूविंग मैप डिस्प्ले लगा होता है उसमें चालक को सही रास्ते की जानकारी मैप के ज़रिए मिल जाती है।एक खास तकनीक से तैयार किए गए गुब्बारे जीपीएस की मदद से ओज़ोन की परत में होने वाले नुकसान की जानकारी समय-समय पर प्रदान करते रहते हैं। जीपीएस से मिल रही इन सेवाओं से सुरक्षा सेवाओं के साथ-साथ आम लोगों के जीवन में कई बदलाव आ गए हैं। इस तकनीक का भविष्य शायद हमारी सोच से भी ऊपर है। और निरंतर इसका प्रयोग करके नए विकास होते ही रहेंगे।

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