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Saturday, October 4, 2008

गूगल का अपना वेब ब्राउजर : क्रोम


क्रोम वेब ब्राउजर ‘ओपन सोर्स कोड’ पर निर्भर ब्राउजर है। माइक्रोसॉफ्ट विण्डोज के लिए इसका बीटा वर्जन लांच हो चुका है लेकिन लाइनेक्स और मैक ओएसएक्स निर्माणाधीन है। इस ब्राउजर के निर्माण में जिन मुख्य बातों पर ध्यान दिया गया है वे हैं- सुरक्षा (सिक्यूरिटी), स्पीड और स्टेबिलिटी(स्थिरता)। सुरक्षा के लिए क्रोम में ऐसी तकनीक का प्रयोग किया गया है जो किसी भी हानिकारक या वायरस/मालवेअर युक्त साइट की लिंक पर क्लिक करते ही इसके हानिकारक होने की सूचना उपयोगकर्ता को मिल जाएगी। इसके साथ ही इस ब्राउजर का उपयोग न करने वाले लोगों तक यह सुविधा पहुँचाने के लिए एक ‘गूगल सेफ ब्राउजिंग एपीआई’ नामक सॉफ्टवेयर भी बनाया गया है। स्पीड ब्राउजिंग के लिए इस ब्राउजर में ‘जावा स्क्रिप्ट वर्चुअल मशीन’ का प्रयोग किया गया है। इसका निर्माण कार्य डेनमार्क में किया गया है। ‘जावा वर्चुअल मशीन के प्रयोग से ‘क्रोम’ पर ब्राउजिंग, बिना ज्यादा समय लिए की जा सकती है। इसके उपयोग से वी8 जावा स्क्रिप्ट नामक एक मशीन बनाई गई है जिसमें हिडन क्लास ट्रांजिशन, डायनमिक कोड जेनेरेशन और गार्बेज कलेक्शन जैसे फीचर दिए गए हैं। स्टेबिलिटी के लिए इस ब्राउजर को ‘मल्टी थ्रेडेड’ बनाया गया है। इस तकनीक के प्रयोग से ब्राउजर बिना किसी परेशानी के कई काम एक साथ कर सकता है। मल्टी थ्रेडेड होने की वजह से अगर यह बहुत से काम एक साथ करता है, तो कोई भी फंक्शन किसी दूसरे फंक्शन की वजह से रुकता नहीं है। इस ब्राउजर से पहले आए ब्राउजर ‘सिंगल थ्रेडेड’ तकनीक पर निर्भर हैं। इसके सुरक्षा पहलू पर काफी लोगों ने सवाल उठाए हैं। इस ब्राउजर में ऑटोमेटिक सॉफ्टवेयर डाउनलोड की सुविधा है, जिसकी वजह से उपयोगकर्ता के द्वारा किसी भी हानिकारक या वायरस वाली साइट खोलने की संभावना बढ़ जाती है। गूगल अपने इसी मल्टी मिलियन पाउंड डॉलर ब्राउजर की पॉलिसी की एक धारा की वजह से भी विवादों में पड़ गया था। इस ब्राउजर का एक और खास फीचर है, ‘इन्कोग्निटो’। इस फीचर की मदद से वेब ब्राउजर पर ब्राउजिंग हिस्ट्री और कुकीज स्टोर नहीं हो पाएगी।

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