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Tuesday, March 18, 2008

नैनो टेक्नोलॉजी : भविष्य के छोटे उस्ताद


रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, का करै तरवारि।।

छोटे की महत्ता के बारे में रहीम ने कितना सही कहा था। आज सदियों बाद यही बात फिर सही साबित हो रही है। अब वह ज़माना नहीं रहा जब वैज्ञानिक अनुसंधान का मतलब होता था बड़े-बड़े उपकरण, बड़े-बड़े प्रयोग, बड़ी-बड़ी प्रयोगशालाएँ और उन प्रयोगों में आने वाली बड़ी-बड़ी परेशानियाँ। जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ता गया, उपकरणों और तकनीकों का विकास होता गया, सुविधाएँ और साधन जुटते गए, ये सब बातें बहुत छोटी होती चली गईं। अब तो लैब-ऑन-अ-चिप (एक चिप पर समा सकने वाली प्रयोगशाला) का युग आ गया है। किसी महान व्यक्ति ने कहा भी था कि "विज्ञान की अगली सबसे बड़ी खोज एक बहुत छोटी वस्तु होगी।" क्या आप कल्पना कर सकते हैं शकर के दाने के बराबर किसी ऐसे कम्प्यूटर की, जिसमें विश्व के सबसे बड़े पुस्तकालय की समस्त पुस्तकों की समग्र जानकारी संग्रहीत हो या किसी ऐसी मशीन की जो हमारी कोशिकाओं में घुसकर रोगकारक कीटाणुओं पर नज़र रख सके या फिर छोटे-छोटे कार्बन परमाणुओं से बनाए गए किसी ऐसे टेनिस रैकेट की जो साधारण रैकेट से कहीं अधिक हल्का और स्टील से कई गुना ज्यादा मजबूत हो। कपड़ों पर लगाए जा सकने वाले किसी ऐसे बायोसेंसर की कल्पना करके देखिए जो जैव-युद्ध के जानलेवा हथियार एंथ्रॉक्स (एक जीवाणु) के आक्रमण का पता महज कुछ मिनटों में लगा लेगा। परी-कथाओं जैसा लगता है न ये सब? पर ये कोरी कल्पनाएँ नहीं हैं। विज्ञान ने इन कल्पनाओं में वास्तविकता के रंग भर दिए हैं। कैसे??? जवाब है- नैनोटेक्नोलॉजी के ज़रिए।नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिकशास्त्री रिचर्ड पी. फिनमेन ने अपने एक व्याख्यान में कहा था- "There is a plenty of room at the bottom” और यही वाक्य आगे चलकर नैनोटेक्नोलॉजी का आधारस्तम्भ बना। रिचर्ड ने अपनी कल्पना में आने वाले कल का सपना देखा था। लेकिन तब उनके पास न तो इतने आधुनिक और सक्षम उपकण थे और न ही इतनी उन्नत सुविधाएँ। उनके लिए अणु-परमाणुओं से खेलना उतना आसान नहीं था, जितना आज हमारे लिए है।
नैनो एक ग्रीक शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- Dwarf अर्थात बौना। मीटर के पैमाने पर नैनो को देखा जाए तो यह एक मीटर का अरबवाँ भाग होता है...
नैनो शब्द शायद आप लोगों के लिए नया नहीं होगा (टाटा मोटर्स ने मेरा काम आसान कर दिया है)। नैनो एक ग्रीक शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- Dwarf अर्थात बौना। मीटर के पैमाने पर नैनो को देखा जाए तो यह एक मीटर का अरबवाँ भाग होता है (1 नैनो मीटर = 10-9 मीटर)। अगर एक साधारण उदाहरण से समझें तो मनुष्य के एक बाल की चौड़ाई 80,000 नैनो मीटर होती है। ...अब आप सोच सकते हैं कि 1 नैनो मीटर कितना छोटा होता होगा? आइए, अब थोड़े सरल शब्दों में नैनोटेक्नोलॉजी को समझते हैं। किसी भी निर्माण प्रक्रिया का पहला और सबसे महत्वपूर्ण चरण है उसके परमाणुओं का उचित विन्यास और व्यवस्था। अणु और परमाणुओं को तो आप जानते ही होंगे? किसी पदार्थ के गुण इन्हीं अणुओं और परमाणुओं की व्यवस्था पर निर्भर होते हैं। व्यवस्था जितनी भिन्न, पदार्थ उतना अलग। हमारी सृष्टि अणु और परमाणुओं का संयोग ही तो है। कोयले के कार्बन परमाणुओं को ज़रा पुनर्व्यवस्थित करके तो देखिए... चमचमाता हुआ बहुमूल्य हीरा आपके सामने होगा। रेत के ढेर में सिलिकॉन चिप का अक्स देखने की कोशिश की है कभी? बरगद के वृक्ष, सड़क किनारे खड़े चौपाए और स्वयं में तुलना करके देखिए... एक ही तरह के तत्वों का पिटारा हैं ये तीनों, अंतर है तो बस उनके अणु और परमाणुओं के संयोजन में।परमाण्विक स्तर (नैनो स्केल) पर किसी पदार्थ के परमाणुओं में जोड़-तोड़ करना, उन्हें पुनर्व्यवस्थित करना और मनचाही वस्तु बनाना... यही है नैनोटेक्नोलॉजी। नैनोटेक्नोलॉजी में काम आने वाले पदार्थों को नैनोमटैरियल्स कहा जाता है। ये पदार्थ जितने छोटे हैं, उतने ही अधिक सक्रिय और शक्तिशाली भी। इसका मुख्य कारण है इनका विशाल सतह क्षेत्र। नैनो स्तर पर परमाणुओं का प्रकाशिक (ऑप्टिकल), वैद्युत (इलेक्ट्रिकल) और चुम्बकीय (मैग्नेटिक) स्वभाव भी काफी अलग होता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण किसी नई और शक्तिशाली तकनीक की खोज के लिए वैज्ञानिकों का ध्यान परमाणुओं की ओर आकर्षित हुआ। वैसे देखा जाए तो नैनोटेक्नोलॉजी नई विधा नहीं है। बहुलक (पॉलीमर) तथा कम्प्यूटर चिप्स के निर्माण में इसका उपयोग वर्षों से हो रहा है।

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