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Wednesday, March 26, 2008

मोबाइल फोन की क्लोनिंग



मोबाइल फोन की क्लोनिंग करनेवालों की मदद करने के के लिए इंटरनेट पर कई सॉफ्टवेयर मौजूद हैं। हालांकि, सबसे पॉपुलर दो सॉफ्टवेयर हैं। इनके नाम हैं एफडब्ल्यूटी-राइट और यूएनआई सीडीएमए। स्पेशल सेल के हत्थे चढ़े लोग भी इन दोनों सॉफ्टवेयरों का इस्तेमाल कर रहे थे।
पुलिस अफसरों ने बताया कि ये दोनों सॉफ्टवेयर इंटरनेट के अलावा रिलायंस वेब वर्ल्ड आउटलेट्स पर भी हैं। होता यह है कि क्लोनिंग करने वाले लोग मोबाइल कंपनी के कर्मचारियों की मदद से मोबाइल नंबरों के एमआईएन (मोबाइल आइडेंटिफिकेशन नंबर) और ईएसएन (इलेक्ट्रॉनिक सीरियल नंबर) मालूम कर लेते हैं। दरअसल, एमआईएन फोन नंबर का होता है, जबकि ईएसएन हैंडसेट का होता है। ईएसएन हैंडसेट की बैटरी के नीचे लिखा होता है, जबकि एमआईएन नजर नहीं आता। एमआईएन ओरिजिनल भी वहीं होता है, जो क्लोन्ड होता है। ईएसएन ओरिजिनल अलग होता है और क्लोन्ड इससे अलग। उसे कंप्यूटराइज्ड प्रोग्रामिंग में फीड किया जाता है। इसके बाद, सॉफ्टवेयर और इन दोनों नंबरों से प्रोग्रामिंग कर मोबाइल का क्लोन तैयार कर दिया जाता है।
अब क्लोन किया गए नंबर से जिसे भी फोन किया जाता है, उसके हैंडसेट की स्क्रीन पर कस्टमर का नंबर आता है। कॉल चार्जिंग का बिल भी उसी कस्टमर के खाते में जाता है। उस कस्टमर को झटका तब लगता है, जब भारी-भरकम बिल उसके घर पहुंचता है। इन मामलों के एक्सपर्ट कहते हैं कि ये केस बड़ी संख्या में हो रहे हैं और एफआईआर बहुत कम दर्ज हो रही हैं। वजह यह कि अव्वल तो ठगा गया कस्टमर पुलिस में रिपोर्ट करने के बजाय नंबर बदलना ही बेहतर समझता है। अगर किसी ने पुलिस में जाने की जहमत भी उठाई तो पुलिस इस तरह के मामलों में हाथ डालना कम पसंद करती है।
पुलिस की बहुत कम यूनिटों को इस तरह के पेचीदा मामलों से निपटने की जानकारी है। इसीलिए रिलायंस के केस को स्पेशल सेल को सुपुर्द किया गया, जबकि इस यूनिट की जिम्मेदारी आतंकवादियों से निपटना है। पुलिस ने बताया कि फोन क्लोनिंग का शिकार भले ही देश के किसी भी शहर में हो, उसे दिल्ली या किसी भी शहर से चूना लगाया जा सकता है। दरअसल, जालसाजों को खुद भी मालूम नहीं होता कि उनके हाथों ठगा जा रहा कस्टमर कौन है या किस शहर में रहता है।
जालसाज तो 10 नंबर के डिजिट इधर से उधर करते हुए किसी भी नंबर को क्लोन कर लेते हैं। मसलन, एक केस में कंप्लेंट मिलने के बाद पुलिस ने ठगे गए ग्राहकों की सीडीआर (कॉल डिटेल्स रेकॉर्ड) निकालकर उसे चेक किया तो कारस्तानी मालूम हुई। सीडीआर से मालूम हुआ कि कस्टमर के नंबर से एक कॉल मुंबई से की गई और उसी नंबर से पांच मिनट बाद ही दूसरी कॉल अंबाला से की गई। साफ है कि कोई भी इंसान पांच मिनट में मुंबई से अंबाला हीं पहुंच सकता। कस्टमर मुंबई में था। इसका मतलब यह हुआ कि क्लोन किया गया फोन अंबाला में था।
अपराधियों को पकड़ने का तरीका
जिस तरह से मोबाइल क्लोनिंग आसान है, जालसाजों तक पुलिस का पहुंचना भी उतना ही आसान हो सकता है। इसके लिए जरूरी यह है कि क्लोन किए गए नंबर से किसी एक खास नंबर पर कई बार कॉल की गई हो। पुलिस उस नंबर वाले ग्राहक को पकड़ कर क्लोनिंग करनेवालों का सुराग लगा सकती है। रिलायंस के केस में भी पुलिस इसी तरीके से अपराधियों तक पहुंचने में कामयाब रही।

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